लखनऊ के पार्कों में ग्रीन बेल्ट के विकास में सहयोग करेंगे एनबीआरआई के विशेषज्ञ वैज्ञानिक

लखनऊ, 25अक्टूबर, 2021: सीएसआईआर- राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई), लखनऊ ने को अपना 68वां वार्षिक दिवस मनाया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि प्रो केपी गोपीनाथन (विशिष्ट प्रोफेसर, भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु) थे।
कार्यक्रम में संस्थान की वार्षिक रिपोर्ट 2020-21जारी की गयी। प्रोफेसर गोपीनाथन ने रेशम पैदा करने वाले कीटों पर चर्चा करते हुए कहा कि कीट सर्वाधिक विविधता प्रदर्शित करने वाले जीव हैं एवं इस कारण विकास तंत्र में विविधता को समझने के लिए बहुत अच्छे उदाहरण उपलब्ध कराते हैं।

भविष्य में कीड़ों का जैव-फैक्ट्रियों के रूप में हो सकता है उपयोग : प्रो.गोपीनाथन 


इन कीटों में कुछ ऐसे कीट भी होते हैं जो हमें महत्वपूर्ण उत्पाद प्रदान करते हैं। ऐसा ही एक कीड़ा है रेशम का कीड़ा। ये कीट अपनी लार्वा अवस्था के दौरान अपने मुंह में मौजूद रेशम की ग्रंथियों से इस रेशम के धागे को बनाते हैं, जिससे उनके चारों तरफ एक आवरण बनाता है जिसे कोकून कहते हैं। 

सीएसआईआर- राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान ने मनाया 68वां वार्षिक दिवस

कुल रेशम उत्पाद का 90% से भी अधिक रेशम के कीड़े प्रजाति बोम्बिक्स मोरी द्वारा उत्पन्न किया जाता है। ऐसे में रेशम के कीड़े के जीनों का अध्ययन न सिर्फ रेशम के विकास को समझने में काफी महत्वपूर्ण है बल्कि वैज्ञानिक विधि से रेशम की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए भी काफी आवश्यक है। 
ऐसे अध्ययनों से न भविष्य में कीड़ों को जैव-फैक्ट्रियों के रूप में भी उपयोग में लाया जा सकता है जिनके जीनों में वैज्ञानिक रूप से फेर-बदल कर वांछित प्रोटीन प्राप्त की जा सकें। इस अवसर पर संस्थान द्वारा लखनऊ विकास प्राधिकरण के साथ एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किये गये।
इसके अंतर्गत संस्थान के विशेषज्ञ वैज्ञानिक लखनऊ नगर में स्थित पार्कों को ग्रीन बेल्ट के रूप में विकसित करने में सहयोग करेंगे। डॉ. शरद श्रीवास्तव (वरि. प्रधान वैज्ञानिक) ने बताया कि संस्थान के पास उपलब्ध पुष्पकृषि तकनिकियों के साथ इस पार्को को ग्रीन लंग्स के रूप में कश्मीर के प्रसिद्द शालीमार उद्यान के तर्ज पर विकसित किया जायेगा।
पवन कुमार गंगवार, सचिव, लखनऊ विकास प्राधिकरण ने कहा कि एनबीआरआई अपने प्रसिद्द वनस्पति उद्यान के लिए जाना जाता है। 
इस समझौते के साथ लखनऊ विकास प्राधिकरण शहरी बागवानी, बोन्साई जैसे नवीन तरीको से अपने पार्को को विकसित करेगा जिससे जनमानस आदि को पौधों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त हो सके। समारोह के अंत में डॉ पी ए शिर्के द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया।
संस्थान के निदेशक प्रो एसके बारिक ने अतिथियों का स्वागत करते हुए वर्ष 2020-21 की अवधि के दौरान वार्षिक प्रगति की जानकारी प्रस्तुत की। 
  • इस वर्ष के दौरान संस्थान ने पादप विज्ञान से सम्बंधित कुल 132 परियोजनाओं पर अनुसंधान एवं विकास कार्य को आगे बढाया
  • संस्थान द्वारा कोरोना महामारी के दौरान हर्बल हैण्ड सैनीटाईजर, मास्क स्ट्रेस रिड्यूसर उत्पादों के साथ-साथ तीन अन्य पादप आधारित उत्पादों को विकसित करके उनकी प्रौद्योगिकी विभिन्न उद्योगों को हस्तांतरित की गई जिनमें हल्दी की पत्तियों पर आधारित फ्लोर मॉप, युरोलिथिअसिस (गुर्दे की पथरी) कम करने की हर्बल दवा एवं पारंपरिक काढ़ा शामिल हैं।
  • महामारी के दौरान कोरोना टेस्ट की क्षमता बढ़ाने के लिए संस्थान ने एक आधुनिक वाईरोलॉजी प्रयोगशाला की स्थापना भी की जिसमे अगस्त 2021 तक लगभग दो लाख साठ हज़ार कोरोना नमूनों की जाँच की गयी |
  • संस्थान द्वारा आठ नई प्रजातियों को खोजा गया साथ ही भारत से पहली बार नए भौगोलिक रिकॉर्ड के रूप में 26 प्रजातियों को खोजा गया |
  • संस्थान द्वारा उत्तर प्रदेश के आर्सेनिक-दूषित जिलों में आर्सेनिक प्रदूषण का आकलन और निगरानी करने के प्रयासों में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की गई और उत्तर प्रदेश में हेक्साक्लोरोसाइक्लोहेक्सेन (एचसीएच) डंपसाइटों का सूक्ष्म्जैविक उपचार प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए भूमिसुधार किया गया।
  • औषधीय एवं औद्योगिक उपयोग के लिए बेहतर कैनाबिस लाइनों का विकास
  • संस्थान के वनस्पति उद्यान में एक साईकस उद्यान को विकसित किया गया जिसके अंतर्गत साईकस की विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण कार्यक्रमों को चलाया गया।
  • सीएसआईआर अरोमा मिशन के अंतर्गत संस्थान द्वारा ओड़िसा के नबरंगपुर के किसानों को हल्दी की खेती की नवीन जानकारी के साथ-साथ संस्थान द्वारा विकसित जैविक खाद का भी वितरित किया गया जिससे फसलों की पैदावार बढाई जा सके।

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